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Vrndaavan Me Bihaar Se Ek Parivaar Aakar Rahane Laga - वृंदावन मे बिहार से एक परिवार आकर रहने लगा

Vrndaavan Me Bihaar Se Ek Parivaar Aakar Rahane Laga - वृंदावन मे बिहार से एक परिवार आकर रहने लगा





कलयुग में बिहारी जी का साक्षात्कार

वृंदावन मे बिहार से एक परिवार आकर रहने लगा। परिवार मे केवल दो सदस्य थे। राजू और उसकी पत्नी। राजू वृंदावन मे रिक्शा चलाकर अपना जीवन यापन करता था और रोज बिहारी जी की शयन आरती मे जाता था पर जिंदगी की भागम भाग मे धीरे धीरे उसे बिहारी जी के दर्शन को सौभागय ना मिलता।

हरि कृपा से उसके घर एक बेटी हुई लेकिन वो जन्म से ही नेत्रहीन थी। उसने बड़ी कौशिश की पर हर तरफ से निराशा ही हाथ लगी। बेचारा गरीब करता भी क्या? इसे ही किस्मत समझ कर खुश रहने की कोशिश करने लगा।

उसकी दिनचर्या बस इतनी थी। वृंदावन मे भक्तों, संतो और दर्शनार्थियों को इधर से उधर लेकर जाना। लोगों से बिहारी जी के चमत्कार सुनता और सोचता मैं भी बिहारी जी से जाकर अपनी तकलीफ कह आता हूँ फिर ये सोचकर चुप हो जाता बिहारी जी के पास जाऊं और वो भी कुछ माँगने के लिए ही, नही ये ठीक नही है पर एक दिन पक्का मन करके बिहारी जी के मंदिर तक पहुँचा और देखा गोस्वामी जी बाहर आ रहे हैं।

उसने पुजारी से कहा, क्या मैं बिहारी जी के दर्शन कर सकता हूँ?पुजारी जी बोले, मंदिर तो बंद हो गया है। तुम कल आना। पुजारी जी बोले, क्या तुम मुझे घर तक छोड़ दोगे? राजू ने रोती आंखों को छुपाते हुए, हाँ में सिर को हिला दिया।पुजारी जी रिक्शा पर बैठ गए और राजू से पूछा, बिहारी जी को क्या कहना था?

राजू ने कहा, बिहारी जी से अपनी बेटी के लिए आंखों की रोशनी माँगनी थी वो बचपन से देख नही सकती। बातों बातों मे पुजारी जी का घर कब आ गया! पता ही ना चला पर घर आकर राजू ने जो देखा सुना वो हैरान कर देने वाला था। घर आकर राजू ने देखा उसकी बेटी दौड़ भाग कर रही है। उसने अपनी बेटी को उठाकर पूछा ये कैसे हुआ? बेटी बोली पिताजी! आज एक लड़का मेरे पास आया और बोला तुम राजू की बेटी हो। मैंने जैसे ही हां कहा उसने अपने दौनो हाथ मेरी आंखों पर रख दिए फिर मुझे सब दिखने लगा पर वो लड़का मुझे कहीं नही दिखा।

राजू भागते भागते पुजारी जी के घर पहुँचा पर पुजारी जी बोले मैं तो दो दिन से बीमार हूँ। मैं तो दो दिन से बिहारी जी के दर्शन को मंदिर ही नही गया।

चींटी के पग घुंगरू बाजै, तो भी साहिब सुनता है। आज इस सूत्र का प्रमाण मिला। सब पर भगवान की बराबर दाया है। यह सूत्र भी आज साकार्थ हुआ!

किसी मंदिर में दर्शन करते हुए किसी भक्त को किसी आगंतुक ने पूछा। आप जो चाहें, इनसे मांग लें। आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी। वह भक्त बोला, मेरा तो भाव है, जब उन्हें इस सृष्टि के कण कण में घटित हर एक क्षण का पता है, तो मेरा भाव भी निश्चित पता होगा उसे! मेरे लिए क्या अच्छा बुरा है, सब इनको पता है। फिर मांग क्यो रखूं। "जेहि विधि नाथ होए हित मोरा...।" इनके द्वार पर आया हूँ, अपने को समर्पण किया है। आगे यही जानें। इनके द्वार तक भक्त का पहुंच जाना ही समर्पण है।

बोलो बांके बिहारी लाल की जय।

हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे।
हरे राम, हरे राम, राम-राम, हरे हरे।।

श्रीधाम वृंदावन बांके बिहारी लाल जी की जय।

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