जय गौर हरि
उड़त अबीर, गुलाल भर- भर थारी, आयी बृजनारी I
बाँध के पगड़ी , कसकर फेंटा गिरधर मारे पिचकारी II
काहू को बिगरो, गौरा मुखड़ा, काहू की बिगरी सारी I
बृजमण्डल खेले, प्रेम की होरी संग में राधाकुंजबिहारी II
युगलछबि निहार 'वृंदासखी' निजभाग जाऊ बलिहारी I
लाल गुलाल मल दियो मोहन , मैं तो वा पर वारि वारि II
🧭 03:05
स्वर: परम् वैश्नव अंजुना जी
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