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भगवान् से मिलने के लिए आए नारद जी तो रुक्मिणी जी बेचारी चुपचाप

भगवान् से मिलने के लिए आए नारद जी




जय गौर हरि  04/03/2023 संकलित

श्रीमद्भागवत महापुराण यज्ञ

परमाराध्य गुरुदेव श्री अतुल कृष्ण गोस्वामी महाराजश्री के वचनामृत

ज्यों की त्यों....

मेरे गुरुदेव प्रभु कहते हैं एक दिन नारद जी आए और बोले- "चलो भगवान् से मिल आएँ।"

भगवान् से मिलने के लिए आए तो रुक्मिणी जी बेचारी चुपचाप। "क्यों स्वामिनी!" "इतने दिन हो गए हैं, श्रीकृष्ण कहाँ? मिलते ही नहीं, हम तड़फ रही हैं।" “सत्यभामाजी के घर होंगे! वहाँ गए तो वहाँ भी नहीं। जिससे पूछे वही बोले-"बहुत दिन हो गए, श्रीकृष्ण तो यहाँ नहीं हैं।" सबके मन में बड़ा संदेह, इतनी रूपवती स्त्री, फिर भी गायब।


"उद्धवजी से पता लगाओ कि रात में कहाँ रहते हैं? उनको रंगे हाथ पकड़ो कहीं।" तो सब ढूँढ़ने लगे, पता न लगे।


एक दिन एक ने आकर खबर दी उद्धव जी को-"महाराज एक बड़ी विचित्र बात है।" द्वारिका से बहुत दूर कल मैं आ रहा था तो एक मिट्टी की झोंपड़ी में बड़ी ज्योति थी। "सोने की द्वारिका में मिट्टी की झोंपड़ी!" "कोई महात्मा आए हैं क्या!


भगवान् की आज्ञा है कि द्वारिका में कोई संत की उपेक्षा न हो जाय।महात्माओं की अवहेलना न हो जाय।" बोले-'चलो! 'रथ पर बैठकर गए, धीरे धीरे। तो देखी एक फूस की छोटी सी झोंपड़ी, उसमें छोटा-सा दरवाजा था और किसी संत ने आकर यहाँ झोंपड़ी छाई है, ऐसा मालूम पड़ता है। चुपचाप अपने आयुध उतारकर रथ रोक दिये धीरे से। समाधि नहीं टूटे।


क्रमशः

परमाराध्य गुरुदेव श्री अतुल कृष्ण गोस्वामी जी महाराज

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