जय गौर हरि
०८/०३/२०२३
संकलित
श्रीमद्भागवत महापुराण यज्ञ
परमाराध्य गुरुदेव श्री अतुल कृष्ण गोस्वामी महाराजश्री के वचनामृत
ज्यों की त्यों....
मेरे गुरुदेव प्रभु कहते हैं भीष्म कहते हैं: "ब्रह्मचर्य का सांगोपांग स्वरूप देखना है, तो द्वारिका की कुर्सी पर बैठे हुए उन श्रीकृष्ण को देखो जो अपनी त्रिभुवन सुन्दरी पत्नियोँ के पास सोते हुए, बैठते हुए, खाते हुए, गाते हुए, नाचते हुए, रहते हुए भी हम भीष्म आदि भी जिनके ब्रह्मचर्य को आदर्श मानते हैं और जिनका सेवन करते हैं।' सारा समाज स्तब्ध हो गया।
श्रीकृष्ण का तेज मंडल, दिव्य मंडल। बोले- "मुझे परिस्थिति में कुछ भी करना पड़े, लेकिन राधारानी से प्रतिज्ञा करके आए थे कि तुम्हारे सिवाय मैं किसी स्त्री का स्पर्श जीवन में नहीं करूँगा। मैं जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा। प्रेम पुरुषोत्त्म, जिसमें अपने जीवन के तिल तिल का बलिदान नहीं किया, वह संसार में प्रेमतत्त्व का पालन कैसे कर सकता है!"
हाँ! पितामह! बैठिए। कर्ण महाराज। आप खड़े हो जाइए। आपके समान कोई दानी भी नहीं है और धनुर्धारी भी नहीं है, लेकिन आप जब प्रत्यंचा खेंचते हैं तो किसके ध्यान से आपका मन डगमग हो जाता है?"
कर्ण ने कहा-"मैं अर्जुन को कुछ नहीं समझता। मेरे पास जो धनुर्विद्या है, मैं त्रिभुवन में किसी को कुछ नहीं समझता, लेकिन जब श्रीकृष्ण की बात याद आती है तो मेरी चुटकी हिल जाती है। मैं केवल एक ही कला, एक ही दान, इनके पाँडित्य, इनके स्वरूप के आगे ही बिना लड़े हार जाता हूँ।
"व्यासजी महाराज! आपने एक वेद को चार भागों में विभाजित किया -उपनिषद् -मंडल, संहिता-मंडल, आरण्यक, सब ब्राह्मण, शतपथ आपने पौराण मंडल की रचना की।
क्रमशः
परमाराध्य गुरुदेव श्री अतुल कृष्ण गोस्वामी जी महाराज
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