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होरी उत्सव के पद- राधारमण जी नव बसंत खेलत

 जय गौर हरि


होरी उत्सव के पद-


राधारमण जी नव बसंत खेलत 

     वृन्दावन नित लसंत ।


 प्यारीजी शोभित सखिन संग 

    लखि नागर मन बाढ़ी उमंग ॥


 अलबेली प्रथमही लै गुलाल मूठी

     भरि छोड़ी है मुखहि लाल ।


 नागर मानत हैं धन्य धन्य

    सब रसिकन में हैं अग्रगन्य ॥


 श्यामा मुख अत्तर लगाय गाय

      निरखत हैं शोभा समय पाय। 


सखियन पर दिये कुमकुमा दोर

    छवि को नहीं तहाँ ओर छोर ।।


 बाजत बीणा मिरदंग ताल ढप

  ।।। मुरली सारंगी रसाल ।


 गावत तहाँ हैं हिंडोल राग गुणमंजरी 

       हर्षित मन की लाग ।

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