सगरी रात श्याम संग खेलूं,चन्दा छिप मत जैयो रे।
फागुन को अवसर मनमानो
होरी को है खेल सुहानो
अलबेलो साजन मस्तानों
अरे नन्द के छैल आज कहुं भग मत जैयो रे......
चोट दऊंगी मैं भी ऐसो
भूल जायगो ऐसो वैसो
बन के डोले छैला कैसो
पतरी सी मत जाने छैला,भाज मत जैयो रे......
अड़के होरी मैं खेलूंगी
लठिया मार ढाल तोरूंगी
गुलचन गाल लाल कर दूंगी
गली सांकरी छेड़छाड़ को फल तू पैयो रे......
सगरी रात श्याम संग खेलूं चन्दा छिप मत जैयो रे
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