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रस रंग बरसाबे मनमोहन प्यारे ।

 


रस रंग बरसाबे मनमोहन प्यारे ।


खेलत बसन्त वृंदावन होरी ,

लिए  ग्वाल सखा संग बारे।


ब्रज गलियन करत बरजोरी ,

गोरी गोपियन पै रंग डारे ।

घूंघट पट खोलत धरत कलइयां ,

 मुठी गुलाल मुख मारे।


बलिहारी होहोरी के रसिया ,

करो यों हुरदंग नित न्यारे।

मेरो नैंनन न रंग डारो कान्ह ,

देखूँ रस रंग माधुर्य तुम्हारे।

स्वर: परम् वैश्नव अंजुना जी

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