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मेरे गुरुदेव प्रभु कहते हैं सत्यभामाजी ने कहा, देवियो! मैं तुम्हारी सेवा के लिए प्रस्तुत हूँ।

 जय गौर हरि २६/०२/२०२३ संकलित

श्रीमद्भागवत महापुराण यज्ञ परमाराध्य गुरुदेव श्री अतुल कृष्ण गोस्वामी महाराजश्री के वचनामृत ज्यों की त्यों....


मेरे गुरुदेव प्रभु कहते हैं सत्यभामाजी ने कहा, देवियो! मैं तुम्हारी सेवा के लिए प्रस्तुत हूँ। दुष्ट मारे गए हैं। तुम अपने-अपने पते लिखकर हमको दो। हम तुमको तुम्हारे घर पहुँचा देते हैं। लड़कियों ने रोकर चरण पकड़ लिए।


"सत्यभामा जी! हमको कौन रखेगा! इस समाज में कहाँ गुंजाइश है?" अगर वही गुंजाइश आज होती, तो हिन्दुस्तान का दुर्भाग्य क्यों होता! दस हजार मुसलमान को लाए थे, बारह करोड़ हो गए। बात किसकी सुनोगे? भगवान् की सुनोगे कि ठेकेदारों की बात सुनोगे?


ठाकुर ने कहा-"स्त्री कब तक अशुद्ध है? जब तक रजस्वला नहीं होती है। रजस्वला होते ही स्त्री पूर्ण यज्ञ के समान पवित्र और शुद्ध है। उसका त्याग करना बहुत अपराध है।" श्रीकृष्ण का वाक्य है और उसका प्रमाण दिया उन्होंने। बात कही नहीं, आचरण किया।


उन सब देवियों ने चरण पकड़कर कहा "हमको कुछ नहीं चाहिए। हम आपकी दासी होकर रहेंगी। हमारा कोई दोष नहीं है। हमको कौन उच्च कुल की पत्नी और गृहिणी बनाएगा, स्वामिनी।"


सत्‍यभामा जी गंभीर हो गईं, "तुम क्या चाहती हो?"


हमको कोई सुख नहीं चाहिए। हमको किसी महान् कुल की पत्नी होने का सौभाग्य मिलना चाहिए। बहुत करुणा द्रवित हो गईं। "मैं तुम सबको अपनी बहन के समान मानती हूँ। इस समय सौभाग्य है कि पृथ्वी के ऊपर परम पुरुष प्रकट हैं श्रीकृष्ण।" सत्यभामाजी ने कहा-"आर्य पुत्र। आपको इन सबके साथ विवाह करना पड़ेगा।"


क्रमशः


परमाराध्य गुरुदेव श्री अतुल कृष्ण गोस्वामी जी महाराज

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