श्री बरसाना की लट्ठमार होरी की सभी वैष्णव जनों को बधाई हो !!
आज के दिन अर्थात नवमी को बरसाना में लट्ठमार होरी होती है ।
प्रिया-प्रियतम की नगरी में लाठियों से भी प्रेमरस की बरसात होती है।
बरसाने की गोपियाँ, नन्दगाँव के ग्वालों पर लट्ठ से प्रहार करती हैं और वे रोकते हैं ।
यहाँ लट्ठमार में बाँस या लट्ठ की परम्परा क्यों रखी गयी है? इसके कई कारण हैं ।
जैसे – नायक की अधिक चपलता को रोकने के लिए लकुट ही काम आती है
और गोपीजनों के लट्ठ प्रहार को ग्वाल ढालों के द्वारा बचाते हैं, रसमय हास-परिहास करते हुए ।
श्रीजी महल में दोनों पक्षों के रसिकों का समाज गायन होता है।
नंदगांव के लोग जब श्रीजी मंदिर से उतरकर रंगीली गली में आते हैं
तो पहले से सजी धजी हुरियारिनों से नंदगांव के लोग स्वयं को रोक नहीं पाते हैं
और ठिठोली करने लग जाते हैं। अपनी पिचकारी से उन्हें रंगना चाहते हैं।
बस यहीं से अद्भुत लीला का रसास्वादन शुरू हो जाता है।
कृष्ण रूपी पताका का आदेश मिलते ही तड़ातड़ लाठियों की बरसात शुरू हो जाती है।
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